पितृपक्ष 2025: तिथि, विधि, दान-सूची, नियम-और-उपाय |

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पितृपक्ष 2025 (श्राद्ध पक्ष) – श्रद्धा, शांति और पितृविशेष

 

🗓 तिथि:

पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 (रविवार) से प्रारंभ होकर 21 सितंबर 2025 (रविवार) तक रहेगा। इसका समापन सर्वपितृ अमावस्या (महालया) पर होगा ।

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🔱 धार्मिक महत्त्व

: पितृपक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने, पितृऋण (Pitru Rin) का निवारण करने और पूर्वजों के आशीर्वाद हेतु किए जाने वाले सबसे पवित्र अवसरों में से एक है। सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों से यह महत्वपूर्ण है ।

: इस समय में पितर धरती पर आते हैं और यथोचित श्राद्ध, तर्पण व दान-पूजन से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और जीवितों पर उनकी कृपा बरसती है ।

 

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📜 प्रमुख विधियाँ

1. श्राद्ध / पिंडदान

– पितरों की याद में खीर, दलिया, चावल, सब्जी आदि स्निग्ध भोजन बनाकर ब्राह्मणों को भेंट करें।

– पिंड (चावल के गोले) बनाकर पितरों का नाम गोत्र लेकर तीर्थ या नदी में अर्पित करें।

– तर्पण :- जल में काला तिल, जौ, गंगाजल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके नदियों, कुंडों या घर पर तर्पण करें।

 

2. दान-धर्म

– ब्राह्मण, कौवा, गाय, कुत्ते, अग्नि को अन्न, काले तिल, गंगा जल, भोजन आदि वस्तुएँ दान करें। इससे पितृदोष दूर होता है, घर में शांति एवं समृद्धि आती है ।

 

3. मंत्र-जप एवं स्मरण

– विशेष पितृ-गायत्री और ब्रह्म गायत्री आदि मंत्रों का जाप करें।

जैसे:

> ॐ पितृगणाय विद्महे जगदाधाराय धीमहि तन्नो पितृ प्रचोदयात्

> ॐ पितृ देवतायै नमः  

 

4. विशेष तिथियाँ

– प्रत्येक पूर्वज की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करें।

– यदि तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या (21 सितंबर) को करें, जो विशेष फलदायी मानी जाती है, जैसे गया (बिहार) में श्राद्ध द्वारा जीवन-मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।

 

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🚫 क्या न करें :-

पितृपक्ष में निम्न कार्य वर्जित हैं:

  1. नया शुभ कार्य (विवाह, गृह-प्रवेश, व्यापार-आरंभ आदि) न करें 
  2. मांसाहार, शराब या तामसिक भोजन से बचें 
  3. बाल/नाखून काटना, झूठ बोलना, क्रोध करना, वाद-विवाद, पीपल वृक्ष को हानि पहुँचना वर्जित हैं 
  4. पितरों की स्मृति का उपेक्षण मत करें, नियमित तर्पण और धर्म का पालन करें 

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✅ क्या करें :-

° संयमित व सरल जीवनशैली अपनाएँ, शुद्ध मन से पूजा-यज्ञादि करें 

° ब्राह्मण, पशु-पक्षी, गरीबों को भोजनादि पदार्थ समय पर दान दें ।

° सपरिवार श्राद्ध एवं पितृपूजन करें और पितृदेवों का स्मरण करें ‌ 

° देवस्थान/नदी-तट (जैसे गया, हरिद्वार, वाराणसी) पर तर्पण करने से पितरों को तृप्ति मिलती है पूजक को विशेष पुण्य मिलता है ।

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🌾 दान-समग्री

पितृपक्ष में ये वस्तुएँ दान करने पर अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है:

° अन्न (चावल, गेहूं, जौ), वस्त्र (सफेद कपड़ा), लोहे-तांबे के बर्तन, काला तिल, गंगा जल, ऊनी वस्त्र (सर्दी के लिए) आदि के दान से पितृ-दोष नष्ट होता है, आत्मिक शांति मिलती है और जीवितों पर पूर्वजों की कृपा बनी रहती है ।

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🧭 तिथियाँ संक्षेप में 

दिनांक तिथि-संकेत श्राद्ध कार्य

  • 7 सितंबर, रविवार पूर्णिमा प्रथम श्राद्ध (पुर्णिमा श्राद्ध)
  • 8–20 सितंबर कृष्ण पक्ष तिथियाँ पूर्वज की मृत्यु तिथि अनुसार श्राद्ध
  • 21 सितंबर, रविवार अमावस्या सर्वपितृ अमावस्या (सर्वश्राद्ध)
  • सर्वश्राद्ध दिन विशेष फलदायी माना जाता है, विशेष रूप से अगर मृत्यु-तिथि अज्ञात हो 💡 ।

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लाभ-फल

  • पूर्वजों की आत्मा को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति
  • पितृदोष निवारण एवं वंश में मानसिक-आर्थिक समृद्धि
  • पारिवारिक सौहार्द, आशीर्वाद एवं आंतरिक शांति
  • धर्म-–कर्म ऋण की पूर्ति एवं दिव्य-संतुलन की प्राप्ति 

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📞 संपर्क सूत्र

आचार्य कृष्ण कुमार शास्त्री जी

भृगु ज्योतिष अनुसंधान केंद्र, बरेटा (पंजाब)

📱 मोबाइल: 94175-59771

 

— विशेष पूजा-सहायता, तिथि-मुहूर्त-श्राद्ध विधि, ग्रह-पितृदोष निवारण आदि के लिए संपर्क करें।

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